रविवार, 20 जुलाई 2014

और भी हैं....

 कैसे देखूं तेरी आँखों की नमी
मेरी आँखों में आँसू कुछ और भी हैं
....
तेरी मुस्कराहट का दर्द मैं कैसे समझूँ
मुझे मुस्कुराने का शौक नहीं है
 .......
 ढल जाता है दिन जब यादों की तरह
 जज़्बों की राख में दिखते , उसके निशाँ और भी हैं
.......
मुकम्मल नहीं होती फ़रियाद सभी की
मालूम है
पर
मन जलने के बाद भी
हसरतें
और भी हैं
हासिल नहीं है कुछ
रास्ता भी अंजाना है
ज़िन्दगी के सफर में
अभी इम्तिहाँ और भी हैं
और भी हैं। ……… 

सोमवार, 14 जुलाई 2014

( पत्थर तोड़ता एक बच्चा
जो जिंदगी से हैरान लगा मुझे …
की भावनाओं  को दर्शाती कुछ पंक्तियाँ ....  )

.......
कितनी अजीब है बात
न दर्द है ना राहत
न नफरत है ना चाहत
इक अजीब सी कसमसाहट
.............
भीतर जलती आग
और उसमे झुलसता मन
कच्चे कोयले की तरह
पकता रहा हर पल
धधकती ज्वाला के बीच
न कोई प्यास न कोई जलन
कभी अपनों का बेग़ानापन....
कभी खुद से ही.… जीने … की लगन
मुस्कुराता
गुनगुनाता
खिलखिलाता
कभी टूट कर चूर चूर
तो
कभी ……  कोहिनूर
मेरा ये बचपन
हाय मेरा बचपन ……   

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

लगता है ?


तू मेरे रूबरू हो न हो 
तेरी याद में बिताया वक़्त 
अपना सा गुजरता है 
तुझे महसूस करके आज भी 
होती हैं ऑंखें नम 
तेरा साया भी मुझसे 
लिपट के गुजरता है 
जो खामोशियाँ मेरे दिल की 
जुबाँ बन गई 
आज भी मन उन गूँजों के 
दरमियाँ गुजरता है 
कभी तन्हाई में सोच सको 
तो सोच लेना 
मेरे सिवा तुझे क्या कोई 
अपना सा लगता है ???????

उसके रूबरू

प्यार का एक अजूबा अहसास
जिसकी मौजूदगी
      बढ़ा देती है प्यास
एक दू सरे के लिए होता है
       मंज़र बारिश का
बूँदें जो रूह को
       छू जाती हैं
मन भीग सा जाता है
छटपटाती आँहें जी लेती हैं
                     जी भर कर
मिलने की इस घडी में
             रुक जाता है हरेक पल
फ़ना होने को जी करता है
                     उसके रूबरू
लुट जाने को दिल करता है
           उसके रूबरू