शुक्रवार, 29 मई 2015

सपनो को कोई पकड़ पाता

काश इन सपनो को
कोई पकड़ पाता
अपने दिल के दरो दिवार पर
बखूबी सजाता
शान से उन पर
वो नज़रें फिराता
एकबारगी ही सही
 अपनी किस्मत सराहता
चुन लेता उनमे से
जो ख्वाहिश में आता
बगीचे के फूलों
की तरह अपनाता
मुकद्दर को लेकिन
नहीं जश्न भाता
कभी पल सुनहरे
कभी है सताता
कभी तपती रेतों में
दे देता दरिया
कभी छाँव के पेड़
भी है गिराता
चलो अब तो खोलो
तमन्ना का खाता
भरो उनमे जी भर के
खुशियों की गाथा 

मै कल रात

तुम्हारे ख्यालों का तकिया बना कर सोई
                             मै,      कल रात
तुम्हारे प्यार के आँचल में  फूट फूट रोई
                            मै,      कल रात
तुम्हारे स्नेह की चादर ने
    एक सुकू सा दिया मुझको
प्यार का नरम बिछोना जिसपे तुम और
                             मै,      कल रात
आँखों ही आँखों में बात हुई पूरी
                   बस,     कल रात
कैसा अनूठा बंधन , जिसमे उलझी रही
                मै,       कल रात
मेरे माथे पे तुम्हारे हाथों का स्पर्श , चन्दन सा
                     महका ,            कल रात 

माँ

मेरे कानों में पड़ी वो सरगम पहली 
     तुम्हारी धड़कन ही तो थी 
भ्रूण रूप में मेरे निकटतम 
                 माँ तुम ही तो थी 
जीवन का मधुर संगीत 
तुम्हारी लोरी ही तो था 
प्यार का पहला अंकुर 
तुम्हारा स्नेह ही तो था 
ममता , दुलार की अतिश्योक्ति 
                    माँ तुम ही तो थी 

श्रृंगार का उत्तम उदाहरण 
    तुम्हारा चेहरा ही तो था 
अनेको मातृत्व के भाव 
    तुम्हारी गरिमा ही तो थी 
तुम्हारे स्नेह में सिमटी 
बढ़ के नवयुवती बनी 
मेरे जीवन की उज्जवल चांदनी 
                    माँ तुम  ही तो थी 

पराई हो जब गई पिया के देस 
  याद जिसकी आई प्रथम 
     माँ  तुम ही तो थी 
शिशु जब अाया मेरे आँचल में 
मैंने दुलराया  … इक आंसू भी गिर आया 
उन समस्त मिश्रित भावों में 
            माँ तुम ही तो थी 

आज मुझे फिर 
तुम्हारे हाथों का स्पर्श चाहिए 
कुंदन सी मुस्कान भर दे 
मेरे जीवन में 
प्राणो का संचार 
वो फिर चाहिए 
तुम हर पल में मेरे ह्रदय  विराजित हो 
जीवन दायिनी शक्ति बनकर 
मै स्वयं बालिका जिसके समक्ष 
बनना चाहती 
              माँ तुम  ही तो थी
              माँ तुम ही तो हो 





 

नीलाभ

जैसे नीला नीलगगन हो
जैसे नीला हो दरिया 
नीले नीले पंख हो जैसे 
 जैसे  नीली हो नदिया
…… 
नीली नीली आँखों वाली 
नीला जैसे नीलकमल 
नील है जैसे इन्द्रधनुष में 
नील है गाय बड़ी चपल 
……।
नील निराला इतना सुन्दर 
रंग  फैला ये कितना विस्तृत 
नीलकंठ नीलाभ लिए है 
नीला रंग है कितना अद्भुत 

ना मैं जी पाऊंगी

ना छुओ तुम मेरे तन को
मेरे बावरे मन को
कि फिर ना तुम जा पाओगे
ना मैं जी पाऊंगी

समर्पित है तुम्हे सब कुछ
कर दिया इतना तो व्यक्त
फिर रुठने कि जिद ना करो
ना मैं मना पाऊंगी

नींद की वीरान दुनिया में तुम
सपनोंसे आ जाते हो कभीकभी
सच बनकर साकार हो गए तो
ना मैं जी पाउंगी

मेरे अंतःस्थल पर विराजित
तुम्हारा असीमित प्रेम
तुम व्यक्त कर दोगे जिस क्षण
ना मैं जी पाऊंगी

तुम्हे स्पर्श करने को व्याकुल
बाहों के घेरे में आकर
ये पल प्रत्यक्ष हो जाऐ तो
ना मैं जी पाऊंगी

मेरे बच्चे

""
मेरी जीत भी तुम
मेरी हार भी तुम
जीवन के हर पथ पे
फूलों की बहार भी तुम

मेरी आँख का आंसू
मेरे चेहरे का नूर
जीवन के हर पथ पे
मेरे गालों की मुस्कान भी तुम

जीवन का चढ़ाव भी तुम
जीवन का उतार भी तुम
जीवन के हर पथ पे
ममता नदी  का बहाव भी तुम

आनंद का आकाश भी तुम
दर्द का दरिया भी तुम
जीवन के हर पथ पे
भावनाओं का ब्रह्माण्ड भी तुम 

मेरी जीत भी तुम
मेरी हार भी तुम
जीवन के हर पथ पे
फूलों की बहार भी तुम। …