रविवार, 9 जनवरी 2022

कोरोना काल

 कोरोना काल


कैसी विचित्र है स्थिति ये आई

जीवन का सत्य समक्ष ले आई

प्रत्येक कण कण में व्याप्त हो गया भय

 जिजिविषा जीवित करते है आई


परिस्थितियाँ जो थी कभी अनुकूल

 विपरीत हो भयभीत करने लगी 

मन कभी अस्थिर, तो कभी स्थिर

 सुषुप्तावस्था लुप्त हो जगने लगी


मानवता ने देखे रुप इंसानों के अनेक

कही शर्मसार लोभ लोलुपता के दानव से 

कहीं दैवीय रूप में प्रगटे मनुष्य नेक

 फिर भी कुछ ऐसा ना हुआ जो कोरोना दे घुटने टेक


प्रकृति का यह विचित्र रुप संशोधन के हेतु आया 

'निराली और विचित्र है जगत शक्ति की माया 

 सभ्यता स्थापित हो पुनः, यह जन जन को सिखलाया

अन्यथा जीवनी शक्ति की लुप्त हो जायेगी छाया 

प्राकृत्य ने है ऐसा खेल रचाया


राधिका भंडारी

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