रविवार, 5 जनवरी 2014

आम आदमी की कहानी

आम आदमी की कहानी 


तमन्नाओं के सागर में उम्मीदों की नदी जैसे मिलती है 
वैसे ही एक आम इंसान की ख्वाहिशे दुनिया से जुड़ती हैं 
दिन ब दिन बढ़ते घोटालो के साये 
कसमसाती जिंदगी को उलझनो से भर जाते हैं 
बत्तीस से अट्ठाईस तक घट जाए वो रोज़ाना की कमाई … आँखों में आंसू लाते है
और इरादे नाकाम मंज़िलो कि तरह.…  हौसले  बुलंद से...  चूर चूर हो जाते हैं !!!!!!!!

चिल्लर की कमी हम सबको बड़ा सताती है 
सिक्के सिक्के जमा  करने की वो कहानी याद आती है 
महँगाई की मार नश्तर बहुत चुभाती  है 
जिंदगी की जंग.…  आँखों को नम कर जाती है 


…कह्ते है किसी को  मुकम्मल जहां नहीं मिलता 
हर इंसा में खुद का अक्स नहीं मिलता। .... 

©Radhika Bhandari



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