आम आदमी की कहानी
तमन्नाओं के सागर में उम्मीदों की नदी जैसे मिलती है
वैसे ही एक आम इंसान की ख्वाहिशे दुनिया से जुड़ती हैं
दिन ब दिन बढ़ते घोटालो के साये
कसमसाती जिंदगी को उलझनो से भर जाते हैं
बत्तीस से अट्ठाईस तक घट जाए वो रोज़ाना की कमाई … आँखों में आंसू लाते है
और इरादे नाकाम मंज़िलो कि तरह.… हौसले बुलंद से... चूर चूर हो जाते हैं !!!!!!!!
चिल्लर की कमी हम सबको बड़ा सताती है
सिक्के सिक्के जमा करने की वो कहानी याद आती है
महँगाई की मार नश्तर बहुत चुभाती है
जिंदगी की जंग.… आँखों को नम कर जाती है
…कह्ते है किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
हर इंसा में खुद का अक्स नहीं मिलता। ....
©Radhika Bhandari
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