चाहत
उन भीगे अक्षरों से
उन सूखे आंसूओं से
उस मन की व्याकुलता को
उतारने की चाहत
ह्रदय की उस व्यथा को
है बांटने की चाहत
कहूँ क्या , कि शब्द अपरिपक्व
मगर मेरा प्रेम संपूर्ण,
समर्पित
और परिपक्व .......
तुम्हारे हर दुःख को
पा लेने की चाहत
रोम रोम में तुम्हारे
समाने की चाहत
वो मेरी मुस्कराहट पर तुम्हारा हंसना
और मेरी भीगी आँखों को देख रोना
इसी अंदाज पे फ़िदा
होने की चाहत
मेरी चाहत असीम अनंत
कब तक व्यक्त ही करुँगी
कि
बस अब तो है तेरी बाहों में आकर
तेरा क़र्ज़ उतारने की चाहत.......
उन भीगे अक्षरों से
उन सूखे आंसूओं से
उस मन की व्याकुलता को
उतारने की चाहत
ह्रदय की उस व्यथा को
है बांटने की चाहत
कहूँ क्या , कि शब्द अपरिपक्व
मगर मेरा प्रेम संपूर्ण,
समर्पित
और परिपक्व .......
तुम्हारे हर दुःख को
पा लेने की चाहत
रोम रोम में तुम्हारे
समाने की चाहत
वो मेरी मुस्कराहट पर तुम्हारा हंसना
और मेरी भीगी आँखों को देख रोना
इसी अंदाज पे फ़िदा
होने की चाहत
मेरी चाहत असीम अनंत
कब तक व्यक्त ही करुँगी
कि
बस अब तो है तेरी बाहों में आकर
तेरा क़र्ज़ उतारने की चाहत.......
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