गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

चाहत

चाहत 

उन भीगे अक्षरों से
            उन सूखे आंसूओं से
उस मन की व्याकुलता को
             उतारने की चाहत
ह्रदय की उस व्यथा को
                 है बांटने की चाहत

कहूँ क्या , कि शब्द अपरिपक्व
मगर मेरा प्रेम संपूर्ण,
         समर्पित
                  और परिपक्व .......
तुम्हारे हर दुःख को
      पा लेने की चाहत
रोम रोम में तुम्हारे
       समाने की चाहत

वो मेरी मुस्कराहट पर तुम्हारा हंसना
और मेरी भीगी आँखों को देख रोना
इसी अंदाज पे फ़िदा
                होने की चाहत
मेरी चाहत असीम अनंत
कब तक व्यक्त ही करुँगी
कि
बस अब तो है तेरी बाहों में आकर
तेरा क़र्ज़ उतारने की चाहत.......  

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