इक रोज़
इक रोज़ हमने ये सोचा
आज किसी को हँसाए
थोड़ी सी खुशियां लाकर
किसी की मुस्कान बनाएँ
निकले जो देखा, था सामने ,
एक बच्चा था खड़ा
हमने पूछा उससे
क्यों राह पे है पड़ा ?
वो बोला दीदी हम तो ,
इस फूटपाथ के ही बच्चे हैं
दुनियादारी से दूर
अक्ल से कुछ कच्चे हैं
जहां ले जाते हालात वहीँ पहुँच जाते हैं
जिस राह पर रोटी मिल जाए
उसी को अपना समझ, वहीं सो जाते हैं
आप यदि देंगी ....... दो रोटी का निवाला
या पहनने को कपड़ा
तो हम भी जी लेंगे कुछ और .... यहीं पर
नहीं तो बढ़ चलेंगे…… क्योंकि छत है आकाश समस्त
और ऊपर वाले ने
बनाया है हमे जीने के लिए अलमस्त अलमस्त
इक रोज़ हमने ये सोचा
आज किसी को हँसाए
थोड़ी सी खुशियां लाकर
किसी की मुस्कान बनाएँ
निकले जो देखा, था सामने ,
एक बच्चा था खड़ा
हमने पूछा उससे
क्यों राह पे है पड़ा ?
वो बोला दीदी हम तो ,
इस फूटपाथ के ही बच्चे हैं
दुनियादारी से दूर
अक्ल से कुछ कच्चे हैं
जहां ले जाते हालात वहीँ पहुँच जाते हैं
जिस राह पर रोटी मिल जाए
उसी को अपना समझ, वहीं सो जाते हैं
आप यदि देंगी ....... दो रोटी का निवाला
या पहनने को कपड़ा
तो हम भी जी लेंगे कुछ और .... यहीं पर
नहीं तो बढ़ चलेंगे…… क्योंकि छत है आकाश समस्त
और ऊपर वाले ने
बनाया है हमे जीने के लिए अलमस्त अलमस्त
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