चाहती हूँ
मै थक गई बहुत , अब सोना चाहती हूँ
सपनों के देश में जाकर , खोना चाहती हूँ
इक कन्धे का सहारा मिले , तो रोना चाहती हूँ
अपने लिए भी इस जहाँ में , इक कोना चाहती हूँ
सुख और दुःख के छंण , खुद ही ढोना चाहती हूँ
आशा के बीज निराशा की धरती पर , बोना चाहती हूँ
कुछ दूर मेरे हमराज़, मेरे हमसफ़र बनो
नहीं तुमको मै क्यूंकि खोना चाहती हूँ
तुम्हारी ही चाहत में तुम्हारी होना चाहती हूँ
हाँ होना चाहती हूँ
मै थक गई बहुत , अब सोना चाहती हूँ
सपनों के देश में जाकर , खोना चाहती हूँ
इक कन्धे का सहारा मिले , तो रोना चाहती हूँ
अपने लिए भी इस जहाँ में , इक कोना चाहती हूँ
सुख और दुःख के छंण , खुद ही ढोना चाहती हूँ
आशा के बीज निराशा की धरती पर , बोना चाहती हूँ
कुछ दूर मेरे हमराज़, मेरे हमसफ़र बनो
नहीं तुमको मै क्यूंकि खोना चाहती हूँ
तुम्हारी ही चाहत में तुम्हारी होना चाहती हूँ
हाँ होना चाहती हूँ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें