जाने कहाँ खो गए
...मुझमे सिमटकर
मेरे अहसास कर दे बयां
....वो लफ्ज़ नहीं मिलते।
भर देती थी जिनसे
.. किताबो के पन्ने
ज़िन्दगी में उलझे
.....वो हर्फ़ नहीं मिलते।
बेशकीमती थी जिनके लिए
...मुस्कान अधरों की
आते उनके इस ओर अब
....कदम नहीं दिखते।
आंसू का समंदर
...जो भरा रहता था
उनसे गिरते अब
...अश्क नहीं दिखते।
हो गई....ज़िन्दगी सहरा सी
..नहीं आबशार कोई
कि इस रेगिस्तान में ख़ुशी के
...फूल नहीं बिकते।
मेरे चेहरे की रौनक
.. ये किसी और का नूर है
अधूरे से हैं कुछ हम .........
...अब मुकम्मल नही मिलते ।
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