गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

मन

मन

कितनी गहन पीड़ा कितनी गहरी उदासी
जल बिन तड़पत मीन बहुत थी प्यासी
सांझ भी थी धुंधलाने लगी
रात्रि की  ओर  गहराने लगी

आस निरास में परिवर्तित हो चली
कर्ण प्रिय आवाज़ भी हलकी हो चली
ह्रदय में थी जैसे बिजली सी गरजती
मन आकुल, भावनाएं अश्रुओ सी बरसती
बंधन सब यूँ क्यूँ टूट गए
साथी जो बनते थे अपने … क्यूँ छूट गए

क्यूँ पवित्रता यूँ मुरझा गई
पुष्प बनने से   पहले कली कुम्हला गई
क्यूँ मृत्यु विश्वास की थी द्वार पे हुई
बढे जब राधा के पाँव कान्हा की ओर
क्यूँ बनी सहभागिनी रुक्मिणी उनकी
कृष्ण थे जब राधा संग प्रेम विभोर। ....

©Radhika Bhandari



मुझको ...

मुझको ... 

कर्म भूमि के पथ पर
मुझको आगे ही बढ़ना है
तांबा, काँसा,  पीतल ना मुझे
तप कर के सोना बनना है…

ठहरी हूँ  कभी ना ठहरूंगी
ये निश्चय है इन् साँसों का
जीवन अमृत के तुल्य है मिला
कण कण में  आनंद भरना है…

ना झील हूँ मै  ना दरिया हूँ
इक बूँद हूँ जीवन से परिपूर्ण
मै  खोज में हूँ.....  इक सीप मिले
मुझको तो मोती  बनना है। …

 ©Radhika Bhandari


नव वर्ष


नव वर्ष  की है कल्पना, परिकल्पना, अभिकल्पना
यह वर्ष हो विकसित बड़ा
सत्कर्म हो विकसित खड़ा
नित प्रेम हो नित काज हो
बातें सुगम और साध्य हो

हो धर्म का उत्थान भी
अन्वेषणों का ज्ञान भी
चैतन्य हो भरपूर हम , तटस्थता का ध्यान हो
बाधा लडे पथ पर बढ़ें मंज़िल का न अभीमान हो
यह शीश गगन प्रतीक है
      किन्तु धरा का मान हो.....
            किन्तु धरा का मान हो। … 

©Radhika Bhandari

जीवन

जीवन

जीवन प्रतिबिम्ब है भावनाओ का
दिल से करी सेवाओं का
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में
मानवता से भरी कामनाओं का

पथ कठिन हो सकता है ये मगर
वो पथिक क्या जिसकी मुश्किल ना हो डगर
तटस्थ तो चट्टानें ही होती है
जीवन तो नाम है बसंती हवाओं का

आगे बढ़ो चलते रहो नित कर्म तुम करते रहो
सम्मान हो जहां मान हो किन्तु न कभी अभिमान हो
हो व्यस्तता, ना तटस्थता
जहां ज्ञान ही सर्वमान्य हो
तुम नींव हो इस देश की
इस बात का तुम्हे भान हो
तो अडिग रहो और दृढ रहो
आगे चलो चलते रहो। …

©Radhika Bhandari

सोमवार, 16 दिसंबर 2013

आज मन बच्चा बन बैठा


आज मन बच्चा बन बैठा

याद जो आई उसके दुलार कीं
गोद में रखके सर सुनी लोरी थी प्यार की
रूठने मनाने की कहानी वो बार बार की
याद जो आई उसके मनुहार की
आज मन बच्चा बन बैठा।

छण छण बदलती घड़ियों के बीच
बचपन से जवानी की  लड़ियों के बीच
उसका वो हँसना , रो कर मुस्काना
दुःख से सुख चुराने की प्रतिभा के बीच
आज मन बच्चा बन बैठा।

पास है वो दूर नहीं, पर दूर है वो पास नहीं
याद आता है स्पर्श जब
अहसास होता है वो साथ नहीं
भागकर मन उस से मिल बैठा
आज मन बच्चा बन बैठा।।।।

कभी हंसती है कभी हंसाती है
कभी रोती  है कभी रुलाती है
माँ तू हर पल याद आती है
तेरे प्रेम से मन सच्चा बन बैठा
आज मन बच्चा बन बैठा। …

तू स्वर्ण लता सी है सुन्दर
रहती हर छण  मन के अंदर
बिखरी तेरी सुगंध है चारों ओर
चाहे रात्रि हो या हो भोर
मिलने को जी आज कर बैठा
आज मन बच्चा बन बैठा। …

©Radhika Bhandari