मन
कितनी गहन पीड़ा कितनी गहरी उदासी
जल बिन तड़पत मीन बहुत थी प्यासी
सांझ भी थी धुंधलाने लगी
रात्रि की ओर गहराने लगी
आस निरास में परिवर्तित हो चली
कर्ण प्रिय आवाज़ भी हलकी हो चली
ह्रदय में थी जैसे बिजली सी गरजती
मन आकुल, भावनाएं अश्रुओ सी बरसती
बंधन सब यूँ क्यूँ टूट गए
साथी जो बनते थे अपने … क्यूँ छूट गए
क्यूँ पवित्रता यूँ मुरझा गई
पुष्प बनने से पहले कली कुम्हला गई
क्यूँ मृत्यु विश्वास की थी द्वार पे हुई
बढे जब राधा के पाँव कान्हा की ओर
क्यूँ बनी सहभागिनी रुक्मिणी उनकी
कृष्ण थे जब राधा संग प्रेम विभोर। ....
कितनी गहन पीड़ा कितनी गहरी उदासी
जल बिन तड़पत मीन बहुत थी प्यासी
सांझ भी थी धुंधलाने लगी
रात्रि की ओर गहराने लगी
आस निरास में परिवर्तित हो चली
कर्ण प्रिय आवाज़ भी हलकी हो चली
ह्रदय में थी जैसे बिजली सी गरजती
मन आकुल, भावनाएं अश्रुओ सी बरसती
बंधन सब यूँ क्यूँ टूट गए
साथी जो बनते थे अपने … क्यूँ छूट गए
क्यूँ पवित्रता यूँ मुरझा गई
पुष्प बनने से पहले कली कुम्हला गई
क्यूँ मृत्यु विश्वास की थी द्वार पे हुई
बढे जब राधा के पाँव कान्हा की ओर
क्यूँ बनी सहभागिनी रुक्मिणी उनकी
कृष्ण थे जब राधा संग प्रेम विभोर। ....
©Radhika Bhandari