प्रदूषण - कारण और निवारण
बढ़ती आबादी की सबसे विकट व ज्वलंत समस्या है प्रदूषण। लोग आबाद हो रहे हैं और पर्यावरण बर्बाद। दिन ब दिन बढ़ती जनसंख्या अपने साथ विस्तार कर रही है जल, वायु, ध्वनि व् भूमि प्रदूषण का। यहां तक की विज्ञान व सामाजिक विषयों में भी हर कक्षा , हर विद्यार्थी को इसकी घातकता समझाई जा रही है।किन्तु प्रश्न ये उठता है कि कितना समझते हैं और कितना पालन करते हैं लोग।
विज्ञान ने जितनी तेजी से प्रगति करी है उस के परिणामों ने उतना ही गहरा दलदल तैयार किया है मनुष्य के लिए। वायु प्रदूषण की सोचें तो जहां तक दृष्टि डालें धुंआ ही धुंआ , कारखाने और गाड़ियां। जन जीवन इसी प्रदूषित वायु को अपने फेफड़ों तक जाने दे रहा है और जीवन के वर्षों को अल्प कर रहा है। यही प्रदूषित वायु बुजुर्गों , अजन्मे भ्रूणों , नवजात शिशुओं को अंदर से खोखला कर रही है। वर्षा के मेघों से घुल मिल कर यही प्रदूषण अम्ल वर्षा में परिवर्तित हो रहा है जो की फसल के साथ साथ हमारी त्वचा के लिए भी हानिकारक है।
स्वच्छ वायु तो कदाचित पुस्तको के पाठ का हिस्सा बन कर ही रह गई है जिसे प्राप्त करना असंभव के समरूप लगता है। इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाये तो कैसे ? क्यूंकि आबादी , वाहन और कारखाने निरंतर बढ़ते ही जा रहे हैं और बढ़ रह है उनके द्वारा उत्पन्न धुंआ। वायु स्वच्छ रहे भी तो किस प्रकार ?
फिर कानो की सोचे तो ध्वनि तरंगें वातावरण को शोर गुल का मंच बनाती सी लगती हैं। गाड़ियों के हॉर्न , लाउड स्पीकरों पर बजते संगीत , बढ़ते हुए कौवे - कबूतरों की कांव कांव व गुटर गूं बनती है ध्वनि प्रदूषण का कारण। इसी से बढ़ रही है बधिरता और साथ ही कुछ और सुनने का धैर्य भी। इंसान आवागमन के रास्तों के घंटे दो घंटे की चिल्लम चिल्ली झेलने के बाद जब घर में प्रवेश करता है तो मुस्कराहट भी बोझिल लगती है और शिशु की किलकारी -एक कर्ण वेदन गूँज। कुछ पल स्वयं को शांत वातावरण में स्थिर करने के पश्चात ही वह स्वयं को गृहस्थ वातावरण के अनुकूल पाता है। ऐसी हो गई है मनः स्थिति।
और अन्य देखें तो हमारे पांच तत्वों में से दो तत्व - जल और भूमि भी विनाश के कगार की ओर अग्रसर हैं। घरों व कारखानों का कचरा , अस्पतालों से फेंकी गई पट्टियां , दवाएं, प्लास्टर आदि इनसे मिल कर प्रदूषण फैला रही हैं और कारण बन रही हैं बाढ़ व अन्य प्राकृतिक आपदाओं का। सरकार द्वारा कानून बनाये जाने के बावजूद खुले आम पॉलिथीन की थैलियों का उपयोग हो रहा है, हानिकारक रसायन नदियों व समुद्र के पानी में उपस्थित प्राणी जगत पर भारी पड़ रहे हैं और बन रहे हैं उनके विनाश का कारण।
अगर इस स्थिति को अभी भी यहीं न रोक गया तो पर्यावरण कितने भयावह गर्त में डूब जायेगा इसकी कल्पना भी असंभव है। गाड़ियों की नियमित जांच परख ताकि वे विषैला धुंआ न छोड़ें , कारखानो का शहर से दूर स्थापीकरण , जनसँख्या विस्तार में रोक , दूषित तत्वों का नदी तालाबों में मिलान आदि कुछ ऐसे संभव उपाय हैं जो स्थिति की गंभीरता को विनाश की ओर बढ़ने से रोक सकते हैं। साथ ही प्रयत्नशील होना पड़ेगा समस्त मानव जाती को इस प्रदूषण रुपी राक्षस के विनाश के लिए। जागरूकता ज्ञान से आती है और ज्ञान विद्या दान से। तो गुरु जान व विद्यार्थियों , जागो और संचार करो नई जागरण स्फूर्ति का अपने आस पास। तभी संभव होगा नया कल - स्वच्छ, समृद्ध , वैभवशाली।
बढ़ती आबादी की सबसे विकट व ज्वलंत समस्या है प्रदूषण। लोग आबाद हो रहे हैं और पर्यावरण बर्बाद। दिन ब दिन बढ़ती जनसंख्या अपने साथ विस्तार कर रही है जल, वायु, ध्वनि व् भूमि प्रदूषण का। यहां तक की विज्ञान व सामाजिक विषयों में भी हर कक्षा , हर विद्यार्थी को इसकी घातकता समझाई जा रही है।किन्तु प्रश्न ये उठता है कि कितना समझते हैं और कितना पालन करते हैं लोग।
विज्ञान ने जितनी तेजी से प्रगति करी है उस के परिणामों ने उतना ही गहरा दलदल तैयार किया है मनुष्य के लिए। वायु प्रदूषण की सोचें तो जहां तक दृष्टि डालें धुंआ ही धुंआ , कारखाने और गाड़ियां। जन जीवन इसी प्रदूषित वायु को अपने फेफड़ों तक जाने दे रहा है और जीवन के वर्षों को अल्प कर रहा है। यही प्रदूषित वायु बुजुर्गों , अजन्मे भ्रूणों , नवजात शिशुओं को अंदर से खोखला कर रही है। वर्षा के मेघों से घुल मिल कर यही प्रदूषण अम्ल वर्षा में परिवर्तित हो रहा है जो की फसल के साथ साथ हमारी त्वचा के लिए भी हानिकारक है।
स्वच्छ वायु तो कदाचित पुस्तको के पाठ का हिस्सा बन कर ही रह गई है जिसे प्राप्त करना असंभव के समरूप लगता है। इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाये तो कैसे ? क्यूंकि आबादी , वाहन और कारखाने निरंतर बढ़ते ही जा रहे हैं और बढ़ रह है उनके द्वारा उत्पन्न धुंआ। वायु स्वच्छ रहे भी तो किस प्रकार ?
फिर कानो की सोचे तो ध्वनि तरंगें वातावरण को शोर गुल का मंच बनाती सी लगती हैं। गाड़ियों के हॉर्न , लाउड स्पीकरों पर बजते संगीत , बढ़ते हुए कौवे - कबूतरों की कांव कांव व गुटर गूं बनती है ध्वनि प्रदूषण का कारण। इसी से बढ़ रही है बधिरता और साथ ही कुछ और सुनने का धैर्य भी। इंसान आवागमन के रास्तों के घंटे दो घंटे की चिल्लम चिल्ली झेलने के बाद जब घर में प्रवेश करता है तो मुस्कराहट भी बोझिल लगती है और शिशु की किलकारी -एक कर्ण वेदन गूँज। कुछ पल स्वयं को शांत वातावरण में स्थिर करने के पश्चात ही वह स्वयं को गृहस्थ वातावरण के अनुकूल पाता है। ऐसी हो गई है मनः स्थिति।
और अन्य देखें तो हमारे पांच तत्वों में से दो तत्व - जल और भूमि भी विनाश के कगार की ओर अग्रसर हैं। घरों व कारखानों का कचरा , अस्पतालों से फेंकी गई पट्टियां , दवाएं, प्लास्टर आदि इनसे मिल कर प्रदूषण फैला रही हैं और कारण बन रही हैं बाढ़ व अन्य प्राकृतिक आपदाओं का। सरकार द्वारा कानून बनाये जाने के बावजूद खुले आम पॉलिथीन की थैलियों का उपयोग हो रहा है, हानिकारक रसायन नदियों व समुद्र के पानी में उपस्थित प्राणी जगत पर भारी पड़ रहे हैं और बन रहे हैं उनके विनाश का कारण।
अगर इस स्थिति को अभी भी यहीं न रोक गया तो पर्यावरण कितने भयावह गर्त में डूब जायेगा इसकी कल्पना भी असंभव है। गाड़ियों की नियमित जांच परख ताकि वे विषैला धुंआ न छोड़ें , कारखानो का शहर से दूर स्थापीकरण , जनसँख्या विस्तार में रोक , दूषित तत्वों का नदी तालाबों में मिलान आदि कुछ ऐसे संभव उपाय हैं जो स्थिति की गंभीरता को विनाश की ओर बढ़ने से रोक सकते हैं। साथ ही प्रयत्नशील होना पड़ेगा समस्त मानव जाती को इस प्रदूषण रुपी राक्षस के विनाश के लिए। जागरूकता ज्ञान से आती है और ज्ञान विद्या दान से। तो गुरु जान व विद्यार्थियों , जागो और संचार करो नई जागरण स्फूर्ति का अपने आस पास। तभी संभव होगा नया कल - स्वच्छ, समृद्ध , वैभवशाली।
bilkul sahi... agar hum hi aage nahi badenge fir kaise bachayenge khud ko is pradoosan roopi rakshas se
जवाब देंहटाएंI agree with you. We should stop polluting our environment!!!!
जवाब देंहटाएंNice and very nice
जवाब देंहटाएंsahi h bro
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