आज मन बच्चा बन बैठा
याद जो आई उसके दुलार कीं
गोद में रखके सर सुनी लोरी थी प्यार की
रूठने मनाने की कहानी वो बार बार की
याद जो आई उसके मनुहार की
आज मन बच्चा बन बैठा।
छण छण बदलती घड़ियों के बीच
बचपन से जवानी की लड़ियों के बीच
उसका वो हँसना , रो कर मुस्काना
दुःख से सुख चुराने की प्रतिभा के बीच
आज मन बच्चा बन बैठा।
पास है वो दूर नहीं, पर दूर है वो पास नहीं
याद आता है स्पर्श जब
अहसास होता है वो साथ नहीं
भागकर मन उस से मिल बैठा
आज मन बच्चा बन बैठा।।।।
कभी हंसती है कभी हंसाती है
कभी रोती है कभी रुलाती है
माँ तू हर पल याद आती है
तेरे प्रेम से मन सच्चा बन बैठा
आज मन बच्चा बन बैठा। …
तू स्वर्ण लता सी है सुन्दर
रहती हर छण मन के अंदर
बिखरी तेरी सुगंध है चारों ओर
चाहे रात्रि हो या हो भोर
मिलने को जी आज कर बैठा
आज मन बच्चा बन बैठा। …
©Radhika Bhandari
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंHeart wrenching..touching..right words hitting at the right spot.. Kudos Radhika....keep up the good work.
जवाब देंहटाएंBeautiful words....soo sweet emotions...direct दिल से..!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...!!
keep on writing more....!!! All d best !!
bahut dhanyawaad
जवाब देंहटाएंतू स्वर्ण लता सी है सुन्दर
जवाब देंहटाएंरहती हर छण मन के अंदर
बिखरी तेरी सुगंध है चारों ओर
चाहे रात्रि हो या हो भोर
मिलने को जी आज कर बैठा
आज मन बच्चा बन बैठा। …------------------------बहुत ही सुन्दर ख्याल
dhanyavaad
हटाएं