कैसे गिरती हुई उन बूंदों से
मै खिल खिल जाती हू
जैसे तुम्हारे आगोश में
प्यार से सिमट सी जाती हू।
छप छप गिरता पानी
हथेलियों पर दरिया बनाता है
और दिल उस समंदर मे
प्यार की कश्ती चलाता है।
मेरी मुस्कान से जैसे
तुम्हारा तन बदन खिल जाता है
तुम कितने मेरे अपने हो
मौसम ये अहसास कराता है।
बादल के टुकड़े सा नन्हा ये मन
प्यार के आसमां में घूमकर आता है
गुनगुनी सी धूप में
दिल का जर्रा जर्रा भर जाता है।
मै खिल खिल जाती हू
जैसे तुम्हारे आगोश में
प्यार से सिमट सी जाती हू।
छप छप गिरता पानी
हथेलियों पर दरिया बनाता है
और दिल उस समंदर मे
प्यार की कश्ती चलाता है।
मेरी मुस्कान से जैसे
तुम्हारा तन बदन खिल जाता है
तुम कितने मेरे अपने हो
मौसम ये अहसास कराता है।
बादल के टुकड़े सा नन्हा ये मन
प्यार के आसमां में घूमकर आता है
गुनगुनी सी धूप में
दिल का जर्रा जर्रा भर जाता है।
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