शुक्रवार, 19 जून 2015

बारिश और मै

कैसे गिरती हुई उन बूंदों से
मै खिल खिल जाती हू
जैसे तुम्हारे आगोश में
प्यार से सिमट सी जाती हू।

छप छप गिरता पानी
हथेलियों पर दरिया बनाता है
और  दिल उस समंदर मे
प्यार की कश्ती चलाता है।

मेरी मुस्कान से जैसे
तुम्हारा तन बदन खिल जाता है
तुम कितने मेरे अपने हो
मौसम ये अहसास कराता है।

बादल के टुकड़े सा नन्हा ये मन
प्यार के आसमां में घूमकर आता है
गुनगुनी सी धूप में
दिल का जर्रा जर्रा भर जाता है। 

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