सोमवार, 16 दिसंबर 2013

आज मन बच्चा बन बैठा


आज मन बच्चा बन बैठा

याद जो आई उसके दुलार कीं
गोद में रखके सर सुनी लोरी थी प्यार की
रूठने मनाने की कहानी वो बार बार की
याद जो आई उसके मनुहार की
आज मन बच्चा बन बैठा।

छण छण बदलती घड़ियों के बीच
बचपन से जवानी की  लड़ियों के बीच
उसका वो हँसना , रो कर मुस्काना
दुःख से सुख चुराने की प्रतिभा के बीच
आज मन बच्चा बन बैठा।

पास है वो दूर नहीं, पर दूर है वो पास नहीं
याद आता है स्पर्श जब
अहसास होता है वो साथ नहीं
भागकर मन उस से मिल बैठा
आज मन बच्चा बन बैठा।।।।

कभी हंसती है कभी हंसाती है
कभी रोती  है कभी रुलाती है
माँ तू हर पल याद आती है
तेरे प्रेम से मन सच्चा बन बैठा
आज मन बच्चा बन बैठा। …

तू स्वर्ण लता सी है सुन्दर
रहती हर छण  मन के अंदर
बिखरी तेरी सुगंध है चारों ओर
चाहे रात्रि हो या हो भोर
मिलने को जी आज कर बैठा
आज मन बच्चा बन बैठा। …

©Radhika Bhandari

6 टिप्‍पणियां:

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  2. Heart wrenching..touching..right words hitting at the right spot.. Kudos Radhika....keep up the good work.

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  3. Beautiful words....soo sweet emotions...direct दिल से..!
    बहुत सुन्दर ...!!
    keep on writing more....!!! All d best !!

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  4. तू स्वर्ण लता सी है सुन्दर
    रहती हर छण मन के अंदर
    बिखरी तेरी सुगंध है चारों ओर
    चाहे रात्रि हो या हो भोर
    मिलने को जी आज कर बैठा
    आज मन बच्चा बन बैठा। …------------------------बहुत ही सुन्दर ख्याल

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