मुझको ...
कर्म भूमि के पथ पर
मुझको आगे ही बढ़ना है
तांबा, काँसा, पीतल ना मुझे
तप कर के सोना बनना है…
ठहरी हूँ कभी ना ठहरूंगी
ये निश्चय है इन् साँसों का
जीवन अमृत के तुल्य है मिला
कण कण में आनंद भरना है…
ना झील हूँ मै ना दरिया हूँ
इक बूँद हूँ जीवन से परिपूर्ण
मै खोज में हूँ..... इक सीप मिले
मुझको तो मोती बनना है। …
कर्म भूमि के पथ पर
मुझको आगे ही बढ़ना है
तांबा, काँसा, पीतल ना मुझे
तप कर के सोना बनना है…
ठहरी हूँ कभी ना ठहरूंगी
ये निश्चय है इन् साँसों का
जीवन अमृत के तुल्य है मिला
कण कण में आनंद भरना है…
ना झील हूँ मै ना दरिया हूँ
इक बूँद हूँ जीवन से परिपूर्ण
मै खोज में हूँ..... इक सीप मिले
मुझको तो मोती बनना है। …
©Radhika Bhandari
वाह ... बहुत बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंन झील हूँ न दरिया हूँ... मुझको तो मोती बनना है...
क्या खूबसूरत अभिव्यक्ति है ... कमाल की भावनाए .. कितनी आसानी से कह दिया .. ।।
बहुत ही बढ़िया... छोटी और दिल को छू लेने वाली कविताएं हैं ...!!
बहुत बधाई.. ऐसे ही लिखते रहो ..।।।
mahadevi verma yug ki yaad aa gayi...exceptional....
जवाब देंहटाएंAabhar
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