शनिवार, 24 मई 2014

चाहती हूँ

मै थक गई बहुत , अब सोना चाहती हूँ
सपनों के देश में जाकर , खोना चाहती हूँ
इक कन्धे  का सहारा मिले , तो रोना चाहती हूँ
अपने लिए भी इस जहाँ में , इक कोना चाहती हूँ
सुख और दुःख के छंण , खुद ही ढोना चाहती हूँ
आशा के बीज निराशा की धरती पर , बोना चाहती हूँ
कुछ दूर मेरे  हमराज़, मेरे हमसफ़र बनो
              नहीं तुमको मै क्यूंकि खोना चाहती हूँ
तुम्हारी ही चाहत में तुम्हारी होना चाहती हूँ
                                              हाँ होना चाहती हूँ

 

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