बुधवार, 18 जून 2014

आस

क्यूँ मन हो जाता आकुल व्याकुल
                    जब भूल चुकी मैं तुमको
क्यों  चुपके से तकती हैं आँखें
                    जब बिसर चुकी मैं तुमको
तुम ह्रदय में आये , संग मुस्काये
                        भूल गई मैं सब कुछ
कितने सपनों के ख्वाब सजाये
                   खो बैठी  मैं सुध बुध
जब जागी तो पाया ये मैंने
                हार गई मैं सब कुछ
है पाने की अब चाह नहीं ,
पर खोने को मन तैयार नहीं
कैसे कह दू नादाँ मन को
                      कि नहीं शेष है अब कुछ  

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