सोमवार, 14 जुलाई 2014

( पत्थर तोड़ता एक बच्चा
जो जिंदगी से हैरान लगा मुझे …
की भावनाओं  को दर्शाती कुछ पंक्तियाँ ....  )

.......
कितनी अजीब है बात
न दर्द है ना राहत
न नफरत है ना चाहत
इक अजीब सी कसमसाहट
.............
भीतर जलती आग
और उसमे झुलसता मन
कच्चे कोयले की तरह
पकता रहा हर पल
धधकती ज्वाला के बीच
न कोई प्यास न कोई जलन
कभी अपनों का बेग़ानापन....
कभी खुद से ही.… जीने … की लगन
मुस्कुराता
गुनगुनाता
खिलखिलाता
कभी टूट कर चूर चूर
तो
कभी ……  कोहिनूर
मेरा ये बचपन
हाय मेरा बचपन ……   

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