kuch mann ki
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बुधवार, 17 सितंबर 2014
अकेला
स्वयं को ढूंढती मैं खुद से हैरान
कभी खुशियों में हंसती
कभी दुःख में परेशान
न जाना क्या पाया
न जाना क्या खोया
हर एक दिन, बस आस ही को बोया
बेजुबां दिल की भाषा
ना किसी ने समझी ना जानी
हर बार अकेला ही
वो ज़ार ज़ार रोया
वो ज़ार ज़ार रोया
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