उस दिन ..
ना जाने क्या हुआ था .... मन कुछ व्याकुल था। .. पर समझ नहीं आ रहा था की आज ऐसा क्यों लग रहा जो समझ से पर है .. शायद ऐसा कुछ होने वाला था जो मन को अंतर्मन तक छूने वाला था .. अपने रोज़मर्रा के कार्य कलापो को निबटा कर मैं हॉल रूम में आई थी कि बड़ी ज़ोर की चीख सुनाई पड़ी .. वाज़िब था की एक पल को लगेगा की कानो का भ्रम है परंतु फिर दूबारा उसी चीख को सुन कुछ सतर्क हुई .. ध्यान दिया तो एक मर्द (क्या वाकई !!!) की आवाज़ भी सुनाई पड़ी..और कोलाहल..उफ़...आह..बचाओ..की ध्वनि तीव्र होती गई। .. पाशविकता की हद्द तक एक नारी की प्रतारणा करि जा रही थी और मैं आंसूओ को रोके अपने मन पर काबू रख बेचैन हो रही थी.. आप कहेंगे वाह !!!! क्या बचाने का प्रयत्न भी नहीं कर सकती थी ? जी किया..बेल भी बजाई ..किन्तु... द्वार खोले कौन ?????..बच्चे जो सुबक रहे थे या पति जो हाथ उठा रहा था..या वो पढ़ीलिखी स्त्री जो पिट रही थी ????
मन बहुत व्याकुल हो गया .. चेयरमैन की वाइफ को फ़ोन किया तो वो बोली की पुलिस में फ़ोन कर दो किन्तु..इतना बड़ा डिसिशन मैं कैसे ले लेती ?.. बहरहाल अत्यधिक अत्याचार सह लेने के उपरान्त जब उसकी ऊँगली मरोड़ कर तोड़ दी गई (जैसा मुझे बाद में पता चला ) तो वो निकल पड़ी... और जब दूसरी neighbor ने बताया की वो बाहर को गई तो मैं दौड़ी.. चलती जा रही थी वो राह पर होशोहवास खो कर ..मन काँप गया की कोई गाडी वाला उड़ा देता तो ??!!... और गाडी से उतर कर ज़बरदस्ती खींचा उसे कार के अंदर और प्लास्टर बंधवा कर घर लाई ..
मित्रों !!!! बात सिर्फ इस घटना की नहीं क्योंकि ये एक ऐसी घटना है जो शायद हर रोज़ कही न कही घटती ही होगी परंतु... मेरा मन ये कह रहा बार बार.... कि क्या स्त्री पढ़ लिख कर भी इसीलिए सहती रहे कि बच्चों का क्या होगा.!!!! . कि माँ पिता के घर गई तो ज़माना क्या कहेगा !!!!!! कि अलग रह कर जीवन यापन किया तो ज़माने के अनेको मर्द उसे खा जाने वाली नज़रों से देखेगे .!!!!! .की जो संस्कार मा पिता के घर से मिले उसमे ये सिखाया गया की डोली गई तो वहां से अर्थी ही उठेगी ... चाहे सितम सह सह कर ज़िंदा लाश बन जाए .. न जाने मन आज तक इस सवाल का जवाब क्यों नहीं दे पाया कि क्या सलाह दूँ उसको?? ..छोड़ दे सब कुछ और नया जीवन शुरू करे .पर अकेले या नए साथी के साथ ???..गर अकेले तो कैसे ज़माने की गिद्ध नज़रों से बचे और नया साथी ढूंढ ले तो क्या गारंटी की वो भी पुनर्स्थापित नहीं करेगा पाशविकता का स्तम्भ !!!!??? अगर चलती रहे उसी गृहस्थी में सब कुछ भूल तो क्या पॉसिबल है !!! सब कुछ भूल जाना.. क्या टीस नहीं उठती रहे जीवन पर्यन्त .. .क्या दोहराया नहीं जाएगा वो वाक़या !!!बड़ी उलझन भरी मनः स्थिति है मित्रों.. प्रैक्टिकल होना एक अलग चीज़ है और कोरा ज्ञान बांटना कुछ और . परंतु मेरे मन की संवेदना को छू गई घटना और उसे कुछ शब्द दे दिए मैंने और आप के साथ मन की दुविधा बाँट ली .... राधिका
एक नीड़ बनाया है उसने
वो जननी है वो अर्धांगिनी है
उस के गौरव को मत रौंदो
वो तुम्हारी शुचिमय भगिनी है
एक नीड़ बनाया है उसने
वो जननी है वो अर्धांगिनी है
उस के गौरव को मत रौंदो
वो तुम्हारी शुचिमय भगिनी है
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