सोमवार, 20 अप्रैल 2020

पंच तत्व

पञ्च तत्त्व 


क्षिति जल पावक गगन समीरा
पञ्च तत्त्व यह रचित शरीरा
 जन्म मिला मानुष जीवन का
जनम जनम क्यों रहे अधीरा

पांच तत्त्व जीवन आधार
आधारित कविता की धार
व्यक्त करू मैं समक्ष सबके
अपनी चाँद पंक्तिया प्रसार

अपनी चाँद पंक्तिया प्रसार
नहीं अतिश्योक्ति अत्याचार
हस्तप्रहर किया सृष्टि पर
रोये क्षिति अविरल धारों धार

अनुपम सृजन कृत्या वसुधा का
 हरित रूप है वसुंधरा का
मौलिकता अभिव्यक्त कणो में
अद्भुत दृश्य रत्न गर्भा का

फिर क्यों धर, स्वांग है आया
धरा का जिसने किया सफाया
नैसर्गिक अनुपम अरण्य का
रूप तनिक क्या इसे न भाया ?

दूजा तत्व, तो है जल पावन
मेघ घिरे ,घटा लाये सावन
तरु पादप की उपस्थिति से
गिरी का ह्रदय हुआ मनभावन

वर्षा आई उमंगित कोपल
तब तक जब तक वन है रक्षित
जीवन सलिल, सलिल जीवन है
नीर सदैव करो परिरक्षित

तीजा तत्व अग्नि की ज्वाला
क्षण भंगुर जीवन का प्याला
क्यों फिर क्लेश धरे चिंतन में
द्वेष दहन कर.... हो मतवाला

राख बने कलुषित अवशेष
हिंसा कपट , राग और द्वेष
स्वाहा करे मानव सब मिलकर
 प्रेम का हो ..... निर्मल समवेश

चौथ तत्व दिग दिगन्त है
नील व्योम वसुधा प्रेमी
छत्र बना  मानव जीवन का
साधे जो है रवि की गर्मी

क्यों न हम प्रयास करे अब
ताप प्रचण्ड ना होय सके
गतिशील रहे, गतिमान रहे
जीवन प्रवाह विद्यमान रहे

पंचम तत्व मलय समीर है
प्रकृति जब रूप अनूप धरे
तीव्र वेग संक्षोभ बने यह
वन जो प्रदूषण कंस हरे

ठहरा पथिक ज्यों शाखहीन तरु
नीचे तनिक विश्राम करे
विस्मित क्यों मानव अब जब
अवलोकित पात हों ....जरे जरे

एक प्रश्न,
अनुत्तरित यहांपर
त्वरित निदान
की मांग करे ---
ईश सृजन जब मुरझाएगा
     पुष्प नहीं होंगे डालों पे
         तिमिर घना जब छा जाएगा
             क्या खग मृग जीवन बच पाएगा ?



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें