कहीं पढ़ा था कभी घर थोड़ा सा बिखरा है तो रहने दो
ये बच्चे पंछी बनके जल्दी ही उड़ जाते हैं
यूं तो अब सिमटा सा रहता है घर
किनारे भी साफ कुछ ज्यादा ही नजर आते हैं
पर वो जो झुंझलाते हुए सामान उठाने की यादें हैं
वो पल पल बार-बार याद आते हैं
घर में घुसते ही जो कोलाहल हो जाता था चालू
अब कानों में अक्सर सन्नाटे चिल्लाते हैं
यादों के आंचल में समेट लिए जो पल
अब मधुर सा संगीत गुनगुनाते हैं
वो दिनभर की भागदौड़ और सारे कार्यकलाप
वो बच्चों की फरमाइशें कुछ अधिक ही व्यस्त कर जाते थे
और अब वो वीडियो कॉल पर बच्चों को व्यंजन दिखाना
खाते हुए आंखों को नम कर जाते हैं
मां तुम कितना परेशान हो जाती हो जल्दी से
अब यही जुमले बच्चे सुनाते हैं
पर दिनभर गुजरने के बाद शाम के वो पल
बच्चों को देख कर मन को भर जाते हैं
जीवन का यही है उसूल पंछी डाल छोड़ दूर कहीं उड़ जाते हैं
जी भर कर करलो दुलार क्योंकि
मां-बाप से दूर ये भी कहा वैसा अपनत्व पाते हैं
भर दो इनमें पूरे संसार का प्यार
क्योंकि घर छोड़कर परिंदे वापस कहां आ पाते हैं
नई दुनिया नया बसेरा वो नई जगह पर ही तो बनाते हैं
यही तो है जीवन क्रम ऐसे ही चलता जाता है ये
और हम आशीष से उनकी यात्रा का पथ सुगम बनाते हैं
© Radhika Bhandari
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