सड़क दुर्घटनाएं-कारण और निवारण
राह चलती जाती है, राहें मिलती जाती हैं
मंज़िल का पता नहीं , राही का पता नहीं........
सब भागमभाग में व्यस्त हैं , व्यस्तता दिनचर्या का अहम् भाग बन गई है , स्त्री , पुरुष, बच्चे किसी के पास ठहरने के दो छण भी नहीं हैं और किसी हद तक इन्ही का परिणाम है - सड़क दुर्घटनाएं।
राह पर चलता हुआ इंसान मानो कोई कीट पतंगा सा बनकर रह गया है। न पैदल सुरक्षित है , न दुपहिया और न ही चार पहिये के वाहन में ही। रात के अँधेरे में ट्रक चालक नशे में धुत होकर गाड़ियों पर चढ़कर अपनी मनमानी करते हुए कितने ही बहुमूल्य जीवनो का अंत कर देते हैं। हालांकि समस्त बस - ट्रक समुदाय अमानवीय नहीं है परन्तु जितनी लापरवाही रात्रि की आकस्मिक दुर्घटनाओ में होती है उसका मुख्य भाग इसी श्रेणी में जाता है। इनके अलावा सड़क पर खोये हुए लोग भी अपनी लापरवाही से दूसरे के जान माल के नुक्सान का कारण बनते हैं। अगर दुर्घटनाओ के कारणो का ब्यौरा देखे तो अक्सर ग़लती सामने वाले की होती है परन्तु भुगतता है सावधान चालक। असावधानी हटी दुर्घटना घटी- परन्तु जो असावधानी पूर्वक ही चलाते हैं उनकी करतूत का फल भोगता है कौन…?
एक और कारण यह भी है कि आजकल युवा वर्ग का एक तिहाई भाग अध्ययन और अन्वेषण की बजाय सड़क पर गति की सीमा लांघने का लक्ष्य निर्धारित कर रहा है… भूल गए हैं ये बच्चे कि कितने अनमोल है वह अपने परिवार के लिए, अपने जनक जननी के लिए ( - हालांकि सामाजिक योगदान शून्य होता जा रहा है परन्तु फिर भी ) जीवन अमूल्य होता है और एक ही बार एक जीवन मिलता है। ईश्वर प्रदत्त सबसे अनमोल उपहार है मनुष्य का जीवन क्यूंकि धरा को बनाने और मिटाने में सर्वाधिक योग दान भी उसी का ही है। पशु पक्षियों की तरह नहीं जी सकते हम , क्योंकि बुद्धि का सर्वोत्तम उपयोग ईश्वर ने हमे ही प्रदान किया है।
सड़क पर होती दुर्घटनाएं अब अखबारों का अधिकतम भाग ले लेती हैं , नतीजतन समाचार पत्र के अंतिम पृष्ठ तक पहुँचते पहुँचते या तो हम निराशा से भर चुके होते हैं या फिर खेद से भरकर बीच में ही रख देते हैं उन पन्नो को मोड़कर रद्दी के लिए।
एक अन्य कारण यत्र -तत्र मकानो व् इमारतों का गिरना भी होता है सड़क पर चलते मनुष्यों की मौत का कारण। विवादास्पद बहुमंज़िला इमारतें और कच्चे घूस खाये मकान, पुल आदि आपदा के आगमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हास्यास्पद बात तो यह है कि जीवन की अनिश्चितता हमारी सरकार कुछ लाख रुपयों से खरीद लेती है ; जबकि वो अमूल्य जीवन कितने ही सपने संजोकर धराशाई हो जाता है और पीछे छोड़ जाता है अपनों के लिए शून्यता।
हमे देखना होगा कि गाड़ी चालकों पर नियंत्रण की सीमा ट्रैफिक पुलिस किस तरह से बढ़ा सकती है , हालांकि हेलमेट की अनिवार्यता तथा मोबाइल पर चलाते हुए बातचीत न करना एक आवश्यक नियम बना दिया गया है जुर्माने सहित, परन्तु कानून को ताक पर रखना इंसान की फितरत बन चुकी है। परन्तु आशाएं बलवान होती हैं और हम तो यही आशा करेंगे कि स्वनियंत्रण ही सबसे बड़ा समाधान है जिसके लिए प्रत्येक को जागरूक होना पडेगा और हर इंसान को दूसरे राही का मददगार भी बनना होगा आपात की स्थिती में , तभी दुर्घटनाएं कम होंगी और होंगी भी तो बहुमूल्य जीवन नष्ट ना होंगे। इस तरफ कदम बढ़ाएं हम सब…
राह चलती जाती है, राहें मिलती जाती हैं
मंज़िल का पता नहीं , राही का पता नहीं........
सब भागमभाग में व्यस्त हैं , व्यस्तता दिनचर्या का अहम् भाग बन गई है , स्त्री , पुरुष, बच्चे किसी के पास ठहरने के दो छण भी नहीं हैं और किसी हद तक इन्ही का परिणाम है - सड़क दुर्घटनाएं।
राह पर चलता हुआ इंसान मानो कोई कीट पतंगा सा बनकर रह गया है। न पैदल सुरक्षित है , न दुपहिया और न ही चार पहिये के वाहन में ही। रात के अँधेरे में ट्रक चालक नशे में धुत होकर गाड़ियों पर चढ़कर अपनी मनमानी करते हुए कितने ही बहुमूल्य जीवनो का अंत कर देते हैं। हालांकि समस्त बस - ट्रक समुदाय अमानवीय नहीं है परन्तु जितनी लापरवाही रात्रि की आकस्मिक दुर्घटनाओ में होती है उसका मुख्य भाग इसी श्रेणी में जाता है। इनके अलावा सड़क पर खोये हुए लोग भी अपनी लापरवाही से दूसरे के जान माल के नुक्सान का कारण बनते हैं। अगर दुर्घटनाओ के कारणो का ब्यौरा देखे तो अक्सर ग़लती सामने वाले की होती है परन्तु भुगतता है सावधान चालक। असावधानी हटी दुर्घटना घटी- परन्तु जो असावधानी पूर्वक ही चलाते हैं उनकी करतूत का फल भोगता है कौन…?
एक और कारण यह भी है कि आजकल युवा वर्ग का एक तिहाई भाग अध्ययन और अन्वेषण की बजाय सड़क पर गति की सीमा लांघने का लक्ष्य निर्धारित कर रहा है… भूल गए हैं ये बच्चे कि कितने अनमोल है वह अपने परिवार के लिए, अपने जनक जननी के लिए ( - हालांकि सामाजिक योगदान शून्य होता जा रहा है परन्तु फिर भी ) जीवन अमूल्य होता है और एक ही बार एक जीवन मिलता है। ईश्वर प्रदत्त सबसे अनमोल उपहार है मनुष्य का जीवन क्यूंकि धरा को बनाने और मिटाने में सर्वाधिक योग दान भी उसी का ही है। पशु पक्षियों की तरह नहीं जी सकते हम , क्योंकि बुद्धि का सर्वोत्तम उपयोग ईश्वर ने हमे ही प्रदान किया है।
सड़क पर होती दुर्घटनाएं अब अखबारों का अधिकतम भाग ले लेती हैं , नतीजतन समाचार पत्र के अंतिम पृष्ठ तक पहुँचते पहुँचते या तो हम निराशा से भर चुके होते हैं या फिर खेद से भरकर बीच में ही रख देते हैं उन पन्नो को मोड़कर रद्दी के लिए।
एक अन्य कारण यत्र -तत्र मकानो व् इमारतों का गिरना भी होता है सड़क पर चलते मनुष्यों की मौत का कारण। विवादास्पद बहुमंज़िला इमारतें और कच्चे घूस खाये मकान, पुल आदि आपदा के आगमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हास्यास्पद बात तो यह है कि जीवन की अनिश्चितता हमारी सरकार कुछ लाख रुपयों से खरीद लेती है ; जबकि वो अमूल्य जीवन कितने ही सपने संजोकर धराशाई हो जाता है और पीछे छोड़ जाता है अपनों के लिए शून्यता।
हमे देखना होगा कि गाड़ी चालकों पर नियंत्रण की सीमा ट्रैफिक पुलिस किस तरह से बढ़ा सकती है , हालांकि हेलमेट की अनिवार्यता तथा मोबाइल पर चलाते हुए बातचीत न करना एक आवश्यक नियम बना दिया गया है जुर्माने सहित, परन्तु कानून को ताक पर रखना इंसान की फितरत बन चुकी है। परन्तु आशाएं बलवान होती हैं और हम तो यही आशा करेंगे कि स्वनियंत्रण ही सबसे बड़ा समाधान है जिसके लिए प्रत्येक को जागरूक होना पडेगा और हर इंसान को दूसरे राही का मददगार भी बनना होगा आपात की स्थिती में , तभी दुर्घटनाएं कम होंगी और होंगी भी तो बहुमूल्य जीवन नष्ट ना होंगे। इस तरफ कदम बढ़ाएं हम सब…
©Radhika Bhandari