रविवार, 22 नवंबर 2015

hui mai...

तुम्हारे दिल में बसने आई थी
बस गई मैं
तुम्हारा घर सजाने आई थी
संवर गई मैं
तुमको बहार देने आई थी
खिलखिल गई मैं
तुमको प्यार करने आई थी
निखर  गई मैं
तुमको पाकर जिंदगी मुकम्मल
तुम्हारी होकर
खुशनसीब हुई मैं
बहुत खुशनसीब हुई मैं। …। 

सोमवार, 16 नवंबर 2015

tapasvi

शिला पर बैठा एक तपस्वी
ध्यानमे मग्न था
तप की उचाईयों से तप्त
ईश से संलग्न था
मानवीय घटनाक्रम जीवनसे उसके अछूते थे
तट पर बैठा प्यास से दूर
ठंडी एक अगन था
उसके जीवन का ध्येय
निर्वाण की प्राप्ति थी
रास के हरेक रास से विभूत
वो भावमग्न था
धरा पुत्र वो बलिष्ठ
ध्यान में ही मग्न था। ....... 

kyaaa?

क्या आज भी तुम्हारे दिल में
मेरा नाम धड़कता है ?
क्यों सुनाई देती है आवाज़ तुम्हारी मुझको
क्यों तेरे नाम से मेरा तन मन बहकता है ?
मेरी आँखों में ढली शाम की सुरमाई
क्या आज भी बिजली बन तुम पर बरसती है ?
या मेरी हंसी की छनछनाहट
तुम्हारे कानो में अब भी बजती है ?
मेरी यादों के तकिये पे अपना सिर रख तुम जो सोते थे
क्या उस सुकूं में आँख आज भी नम  होती है
वो हाथ पकड़ मेरा जो दिल के तार जोड़ते थे
क्या एक होने की कसक आज भी जाग उठती है ???????