सोमवार, 16 नवंबर 2015

tapasvi

शिला पर बैठा एक तपस्वी
ध्यानमे मग्न था
तप की उचाईयों से तप्त
ईश से संलग्न था
मानवीय घटनाक्रम जीवनसे उसके अछूते थे
तट पर बैठा प्यास से दूर
ठंडी एक अगन था
उसके जीवन का ध्येय
निर्वाण की प्राप्ति थी
रास के हरेक रास से विभूत
वो भावमग्न था
धरा पुत्र वो बलिष्ठ
ध्यान में ही मग्न था। ....... 

2 टिप्‍पणियां:

  1. Beautifullll...
    एक तपस्वी ही इस शिरा को छु सकता है ...
    तभी वो तपस्वी कहलाता है ।।।।

    जवाब देंहटाएं
  2. Beautifullll...
    एक तपस्वी ही इस शिरा को छु सकता है ...
    तभी वो तपस्वी कहलाता है ।।।।

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