चाह
कभी मन ये करता ..... कि सागर से खेलूँ
कभी ऊंची ऊंची …घटाओं को छू लूं
कभी दिल मचलता पवन को पकड़ लूं
कभी बरखा रानी की बूंदों को छू लूं
कभी भाव उठते और आँखें बरसती
कभी सैकड़ों उलझने आ अटकतीं
कभी मन हो चंचल कभी ठहरा पानी
कभी प्रेम की सूनी अतृप्त कहानी
है सारी ये बातें अब मन से मिटानी
कहीं रेत को भी,,,,, क्या मिलता है पानी ???????
कभी मन ये करता ..... कि सागर से खेलूँ
कभी ऊंची ऊंची …घटाओं को छू लूं
कभी दिल मचलता पवन को पकड़ लूं
कभी बरखा रानी की बूंदों को छू लूं
कभी भाव उठते और आँखें बरसती
कभी सैकड़ों उलझने आ अटकतीं
कभी मन हो चंचल कभी ठहरा पानी
कभी प्रेम की सूनी अतृप्त कहानी
है सारी ये बातें अब मन से मिटानी
कहीं रेत को भी,,,,, क्या मिलता है पानी ???????
©Radhika Bhandari