मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

My tribute to PRASOON JI

My tribute to PRASOON JI

मधुरता रुपी प्रसून जिस बगिया में खिल जाता है
     उस बाग़ की डाली डाली का रंग ही बदल जाता है
           रोज़ बनते नहीं सितारे आसमान में मगर
           जब बनता है तो  ....... इन जैसा ही बन जाता है…।

"तारे ज़मीन पर" फ़िल्म का गीत "मेरी माँ " जब भी मेरे कानो को स्पर्श करता है, लगता है मानो ह्रदय के समस्त तार झंकृत हो गए हों।  बच्चे के मनोभाव शब्दों में ऐसे पिरोये गए हैं जैसे सीपी में मोती।  उनके द्वारा लिखित गद्य हो या काव्य - भाषा की सरलता और भावों की अभिव्यक्ति से भरपूर होते हैं।

सोलह सितम्बर १९७१ को इनका जन्म अल्मोड़ा , उत्तराखंड में हुआ. इनके पिताजी श्री डी के जोशी पी सी एस अधिकारी थे जिनकी नियुक्ती बाद में State Education Service में  Additional Director के रूप में हुई।  इनकी माँ श्रीमती सुषमा जोशी जी भी All India Radio से लगभग तीस वर्षों से जुडी हुई हैं और साथ ही राजनैतिक विज्ञान कि लेक्चरर भी रहीं।  इतने सर्वगुण संपन्न माता पिता का पुत्र तोह कुशाग्र होना ही था।  अतः मात्र सत्रह वर्षा की उम्र में इनकी पुस्तक " मै  और वह " छपी।  और इसी के साथ प्रारम्भ हुआ प्रसून जी का काव्यात्मक सफ़र।

निपुण प्रसून अपने ज्ञान, अपनी कुशलता के फलस्वरूप दक्ष होते गए और उपरान्त दो पुस्तकें भी लिखीं। MBA करने के पश्चात Advertising से इन्होने अपना Career आरम्भ किया।

चिंतन और मन तब भी निरंतर चल रहे थे क्यूंकि जूनून की राह और भविष्य निर्माण का पथ - एक ना थे।  परन्तु फिर भी दोनों रास्तों को लेकर एक साथ चलने में इन्होने माहिरता दिखाई और O&M से लेकर McKann-Erickson के CEO तक के पद को गरिमापूर्ण रूप से सम्भाला है।

फिल्मों में इनका पदार्पण हुआ गीतकार के रूप में राजकुमार संतोषी की " लज्जा " से जिसके पश्चात आई 'हम तुम' और इसी कड़ी में ब्लैक , फना, रंग दे बसन्ती, तारे ज़मीन पर और डेल्ही-६  जैसे मोती भी जुड़े।  चाँद से की सिफारिश हो या बच्चे का डर  .......  या फिर हम तुम के ताने--- सभी में उनकी कार्य कुशलता ह्रदय को स्पर्श कर जाती है।  भौतिक वाद के युग में किंचित संवेदनशीलता को जागृत करने का उनका यह प्रयत्न सफल रहा है. बौद्धिक जन को निकृष्ट संवादों का नहीं वरन मानसिक उदगारों का सटीक चित्रण चाहिए, भद्रता और अभद्रता सिर्फ कपड़ों से नहीं,,, शब्दों से भी प्रकट होती है।  उच्च कोटि के कार्य स्वयं ही इतने सक्षम होते हैं कि उन्हें गली गली पहुंचाने की आवश्यकता नहीं पड़ती वरन स्वर मुख से स्वयं दिल में उतर जाते है।

"Adguru of India " का खिताब जीत चुके प्रसून ने रिमझिम फुहार के रूप में " अब के सावन ऐसे बरसे " जैसा गीत भी हमे दिया।  मन के मंजीरे और डूबा डूबा रहता हूँ आँखों में तेरी भी इनकी कलम से ऐसे निकले हैं जैसे कल कल बहता निर्झर-झरना।

इसी तरह दरिया बहता रहे इनकी दक्षता का और सराबोर रहें हम इनकी कविताओं की बूंदों से।
ये मेरे भाव हैँ प्रसून जी के लिए  ....... आप की  टिप्पणियों का स्वागत है…

©Radhika Bhandari





     

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