सोमवार, 17 मार्च 2014

धूप

धूप 

कभी तपिश की तरह तपती
कभी सर्द हवाओं में जरुरत बनती  ...... ये धूप

कभी थके राहगीर  की बंदिश
तो कभी ठिठुरते बच्चे की ख्वाहिश ..... ये धूप

कभी चमचमाती सोने के माफ़िक
कभी बादलों  की ओट से दिखती ....... ये धूप

कभी जर्रे जर्रे पे जल जल के गिरती
कभी ओस की ठंडी बूंदों पे खिलती ..  ये धूप

कभी रेत करती सुनहरी सी झिलमिल
कभी दरिया की लहरें रुपहली सी करती..... ये धूप

कभी ज़लज़ले सी कहर ये बरपाती
कभी शीत हवाओं पर चादर सी पड़ती .. ये धूप

कहीं अगन  है , कहीं सुकून लेकिन
मेरे मन के बर्फीले घावों पर जमकर के बरसी... ये धूप
 ©Radhika Bhandari

 

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