रविवार, 9 मार्च 2014

दो पंक्तियाँ ( group of two liners)

दो पंक्तियाँ ( multiples)

9. गुजरा बहुत है सफर , दर्दे बारिश भी सही
रस्ते बहुत थे लम्बे , मगर राह थी वही
इक था जूनून दिल में , इक हसरत भी थी पली
पाएंगे अपनी मंज़िल , और अकेले ही बढ़ चली

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8. तुम बोझ नहीं तुम नारी हो
तुम  भार नहीं धरती पर
बल्कि जन जन पर भारी हो

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7. आज मन में जो बात है बड़ी मुददत से
चाहा है रंगों को भरना हमने शिद्दत से
जमीं पे पाँव हैं मगर ये सोच भी ज़िंदा
कहीं आकाश मिले तो उडूं मै चाहत से
कहीं न भूली सफ़र ये तो राहे मंज़िल है
कभी हटेंगे नहीं मंज़िल ऐ इबादत से  …।

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6. हर दर्द के पीछे कोई राज़ है
टूटते हुए दिल की इक आवाज़ है
गूंजती है सन्नाटों में हर तरफ से जो
नश्तर सा चुभाता इसका हरेक साज़ है ……

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5. दर्द को जुनूँ बनाकर हम बढ़ते गए
आसमाँ की जमीं पर बे-होश चढ़ते गए
सोचा कुछ ऐसा कि उसको रहम आ जाए
हर हाल में मौला के सितम सहते गए ……

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4. जिंदगी की डोर से जुड़ने की चाहत
मंजिल को ढूंढती
          तमन्नाएँ होकर आहत
कैसी है ये ज़िन्दगी की कसैली कड़वाहट
कोई तो इक पल दे हमको इक पल की राहत ……

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3. मौला की मिल्कियत में छाई है मस्ती
ईद की खुशियों से सराबोर है बस्ती
हम बहुत कहते नहीं
सिर्फ फ़रियाद है इतनी
     ना जलाओ आशियाँ सुहाना
        ज़िन्दगी तोहफा है उसका
            नहीं है कीमत इसकी सस्ती। …

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2. पाँव तपते गए
धूप इतनी मिली
कि जमीं का अहसास ही न रहा
हम बढ़ते गए
वक़्त चलता रहा
कि ज़िन्दगी का अहसास ही न रहा …

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1. गर याद न आये
तो इतना काम करो
इक बार तो बस मेरे
प्यार से इंकार करो

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©Radhika Bhandari


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