रविवार, 20 जुलाई 2014

और भी हैं....

 कैसे देखूं तेरी आँखों की नमी
मेरी आँखों में आँसू कुछ और भी हैं
....
तेरी मुस्कराहट का दर्द मैं कैसे समझूँ
मुझे मुस्कुराने का शौक नहीं है
 .......
 ढल जाता है दिन जब यादों की तरह
 जज़्बों की राख में दिखते , उसके निशाँ और भी हैं
.......
मुकम्मल नहीं होती फ़रियाद सभी की
मालूम है
पर
मन जलने के बाद भी
हसरतें
और भी हैं
हासिल नहीं है कुछ
रास्ता भी अंजाना है
ज़िन्दगी के सफर में
अभी इम्तिहाँ और भी हैं
और भी हैं। ……… 

2 टिप्‍पणियां: