शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

तुम मेरी हो

तुम मेरी हो
क्योंकि
तुम मेरे मन  में  अन्तर्निहित
उस  पहली बूँद  की तरह हो
जो वर्षा के  संग आकर
वसुधा को तृप्त करती है

तुम मेरे भावों में उमड़ी
उस कविता की तरह हो
जो आनंदित करती है
मेरे कवित्व को

तुम मेरी  आँखों में निहित
उस रौशनी की  तरह हो
जैसे बादलों से घिरने के बाद
हलकी ओट से सूरज चमकता हो

तुम मेरी हो
मेरे होने का अस्तित्व
मेरी प्रसन्नता
मेरा आह्लाद
तुम से ही तो है

कभी

कभी समंदर में बसेरा
            कभी उड़ती हवाओं में
कभी पेड़ की डाली
          कभी घूमती फ़िज़ाओं में
कभी तनहा तनहा
         कभी मुस्कुराती
कभी आँख आंसू
      कभी खिलखिलाती
कभी मद्धम  मद्धम
         कभी जोर से … दौड़ जाती
ज़िन्दगी की यही
      बस अपनी कहानी
कभी ऑंखें शबनम
    कभी इनमे पानी  

आज़ादी ka जश्न

आज़ादी के जश्न को सबने मनाया
पर अगले दिवस क्या ये किसी को याद आया ?
कि सड़क पर  घूमता बच्चा वो नंगा
क्या ठिठुर कर रात में था सो भी पाया  ?
कि किनारे धो रही जो मैली धोती
सुबह उसने था क्या कोई कौर खाया  ?
कि सड़क पर धूप में जलता वो मानुष
जीवन तपन कि अग्नि से है बच भी पाया ?
कि अगर आज़ाद हैं हम , तो भी क्या है
कि
अगर आज़ाद हैं हम ,
                तो भी क्या है
क्या अमर बलिदान तुमको समझ आया ???????

क्यों होता है ऐसा

क्यों होता  है  ऐसा
कि जब अहसास होता है
तब तुम नहीं होते
और जब तुम होते हो
तो कोई अहसास ही नहीं होता……
कैसा ये ख्वाहिशों का सिला है
जब तुम्हे चाहा .......
              गम ही मिला है
ना  मुकद्दर में हो
ना  हकीकत में
फिर भी कुछ तो है
जो हममे जुड़ा है ....
        जो हममे जुड़ा है 

पल पल

हर पल में पल पल
हर पल को जाते देखा है
क्या तुमसे ये पल अनदेखा है ?
हर पल की आस
अगले पल बदल जाती
ये आँखें कुछ  कहती
इक पल में नम
इक पल में सूख जातीं
ये खेल है हर पल का
जो हर पल बीता जाता है
हर पल में जी लिया तो सुकून
नहीं तो हर पल बीता जाता है। .......