शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

कभी

कभी समंदर में बसेरा
            कभी उड़ती हवाओं में
कभी पेड़ की डाली
          कभी घूमती फ़िज़ाओं में
कभी तनहा तनहा
         कभी मुस्कुराती
कभी आँख आंसू
      कभी खिलखिलाती
कभी मद्धम  मद्धम
         कभी जोर से … दौड़ जाती
ज़िन्दगी की यही
      बस अपनी कहानी
कभी ऑंखें शबनम
    कभी इनमे पानी  

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