शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

तुम मेरी हो

तुम मेरी हो
क्योंकि
तुम मेरे मन  में  अन्तर्निहित
उस  पहली बूँद  की तरह हो
जो वर्षा के  संग आकर
वसुधा को तृप्त करती है

तुम मेरे भावों में उमड़ी
उस कविता की तरह हो
जो आनंदित करती है
मेरे कवित्व को

तुम मेरी  आँखों में निहित
उस रौशनी की  तरह हो
जैसे बादलों से घिरने के बाद
हलकी ओट से सूरज चमकता हो

तुम मेरी हो
मेरे होने का अस्तित्व
मेरी प्रसन्नता
मेरा आह्लाद
तुम से ही तो है

1 टिप्पणी:

  1. तुम मेरी आँखों में निहित
    उस रौशनी की तरह हो
    जैसे बादलों से घिरने के बाद

    हलकी ओट से सूरज चमकता हो---ati sundar panktiyan

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