किसी रोज़
लफ्ज़ की देके शकल
न बदल दोस्त उन जज़्बातों को
वो तो सीने से निकल कर
सीने में उतर जाते हैं
पढ़ के तो देख तू मेरे अल्फ़ाज़ों को
ये तो वो शेर हैं जो दिल में उतर जाते हैं
बात होती अगर उन आंसूओं की ही तो
हम छिपा लेते उन्हें दिल के किसी कोने में
बात तो ग़म की है जो सीने में छुपे रहते हैं
और चुपके से किसी रोज़
बिखर जाते हैं
हमने वादा था किया अश्क न बहाने का
क्या करू दर्द का
जो आँखों से उतर आते हैं
पढ़ के तो देख तू मेरे अल्फ़ाज़ों को
ये तो वो शेर हैं जो दिल में उतर जाते हैं
लफ्ज़ की देके शकल
न बदल दोस्त उन जज़्बातों को
वो तो सीने से निकल कर
सीने में उतर जाते हैं
पढ़ के तो देख तू मेरे अल्फ़ाज़ों को
ये तो वो शेर हैं जो दिल में उतर जाते हैं
बात होती अगर उन आंसूओं की ही तो
हम छिपा लेते उन्हें दिल के किसी कोने में
बात तो ग़म की है जो सीने में छुपे रहते हैं
और चुपके से किसी रोज़
बिखर जाते हैं
हमने वादा था किया अश्क न बहाने का
क्या करू दर्द का
जो आँखों से उतर आते हैं
पढ़ के तो देख तू मेरे अल्फ़ाज़ों को
ये तो वो शेर हैं जो दिल में उतर जाते हैं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें