रविवार, 13 अप्रैल 2014

तुम

तुम 

ना बेवफा न बावफा , कुछ भी नहीं मेरे लिए 
बस एक शख्स हो तुम.……  
                   राहे मुसाफिर की तरह   

जिंदगी का हर पल वीरान है
बस एक तेरा साथ है
                  जो हंसाता है
बस एक तेरा मौन है
                       जो रुलाता है
मेरी भावनाओं के ये दो छोर
बस तेरे ही दम से हैं
वर्ना तो ज़िन्दगी का हर पल
                           नश्तर चुभाता है
तू बोले तो सरगम सी बजती है
तू चुप हो तो आंधी सी चलती है
तू क्या है जो मुझमे समाया है ……
ऐ मेरे हमसफ़र , तू क्या मेरा साया है ????………

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