युवावस्था - एक् तपस्या
जीवन में इक रसधार लिए
तुम नित सपने बुनते जाना
संघर्षों को पतवार बना
तुम नैया को खेते जाना।
है पथिक कई जीवन पथ पर
पर तुम्हें समझकर बढ़ना है
हर राह को निरख परख कर ही
गंतव्य मार्ग से जुड़ना है।
शूल मिलेंगे और पुष्प भी
जीवन मिश्रित भावों का कुंज
ध्येय सुनिश्चित जो कर लेते
राह बनता स्वयं ज्योतिपुंज।
पीड़ाओं को परे हटा कर
अब तुम गर्जित ललकार करो
दीप्तिमान बन अखंड अटल तुम
यौवन की जय जय कार करो।
तुम से ही है नींव राष्ट्र की
स्वशक्ति का मनन करो
विश्व विजयि बनोगे तुम ही
कर्तव्यनिष्ठ वन सृजन करो।
©राधिका भंडारी
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