एक छोटी सी गौरैया
मुझको रोज सताती है
मेरे चेहरे की पहली मुस्कान बन
जब वह मेरे आंगन में आती है
दाना चुग कर चू चू करके
फिर् वह थोड़ा इठलाती है
फिर करके फुर्र् फुर्र् वो उड़ती
दाना लेकर जाती है
रोज सवेरे मुझसे उसका
क्या रिश्ता हो जाता है
दाना ना रखा हो तो क्यों
उसका मुंह बन जाता है
फुदक फुदक के इधर-उधर वह बलखाती शर्माती है
दाना रख दूं तो चुग् कर के सर्र् सर्र् उड़ जाती है
मेरा उससे क्या रिश्ता है यह मुझको मालूम नहीं
पर उसके आने की चाहत
मेरे मन को बहलाती है
एक छोटी सी गौरैया मुझको रोज हंसाती है
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