रविवार, 9 जनवरी 2022

एक छोटी सी गौरैया

 एक छोटी सी गौरैया 

मुझको रोज सताती है 

मेरे चेहरे की पहली मुस्कान बन 

जब वह मेरे आंगन में आती है 

दाना चुग कर चू चू करके 

फिर् वह थोड़ा इठलाती है 


फिर करके फुर्र् फुर्र् वो उड़ती 

दाना लेकर जाती है 

रोज सवेरे मुझसे उसका 

क्या रिश्ता हो जाता है 

दाना ना रखा हो तो क्यों

 उसका मुंह बन जाता है

फुदक फुदक के इधर-उधर वह बलखाती शर्माती है 

दाना रख दूं तो चुग् कर के सर्र्  सर्र् उड़ जाती है 


मेरा उससे क्या रिश्ता है यह मुझको मालूम नहीं 

पर उसके आने की चाहत 

मेरे मन को बहलाती है 

एक छोटी सी गौरैया मुझको रोज हंसाती है

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