रविवार, 9 जनवरी 2022

मुझे भी पंख दो कभी तो

 🌹"मुझे भी पंख दो कभी तो 

बाबुल के आंगन से  

लजाई सिमटी सी 

आई मैं तुम्हारा घर सजाने... 

सपनों को पूरा करने की ..आसमानों में उड़ान भरने की ...इजाजत दो कभी तो.. 

मुझे भी पंख दो कभी तो...


मेरे मन की भी इच्छा है 

हंसने की उछलने की 

बालपन को पूर्ण चखने की ... 

इन नैनो में स्वप्न के इंद्रधनुष भरने की..असीम चाहत दो कभी तो ...

मुझे भी पंख दो कभी तो...


प्रेम के संबंध में 

चाहत के आकाश तले

जल क्रीड़ा सा गहन अनुभव दो...

बंधन ना हो कोई ..पर हो बंधा सा.. ऐसा अपना समर्पण दो कभी तो ...

मुझे भी पंख दो कभी तो .....


ठहर गए जो आंसू 

थम-थम के 

दरिया से बन चले जो ... 

उन्हें अपने हाथों की सीपी के हुनर से...मोती कर दो कभी तो ...

मुझे भी पंख दो कभी तो...


बदन है आत्मा है 

चिर परिचित परमात्मा है 

उस में विलीन होने से पहले ... 

जीवन को सार्थक कर ...पूर्ण काया कर दो कभी तो ..

मुझे भी पंख दो कभी तो ..

मुझे भी पंख दो कभी तो ...

राधिका भंडारी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें