बुधवार, 16 दिसंबर 2015

maun

किसी मौन ने तोडा था ह्रदय
जब व्यक्त करनी  था तुम्हे
अपने हिय की गाथा
अव्यक्त अभिलाषा समझता नहीं कोई
ह्रदय की पिपासा
बुझाता नहीं कोई
स्वप्न सजीले थे
मधुर स्मृति थी
फिर क्यों मौन
जीवन के परिप्रेक्ष्य को ना
समझ सका
विरहाग्नि से जले दो मन
प्राप्त कुछ भी नहीं
हाय वो मौन शाब्दिक क्यों न बन सका
हाय वो मौन शाब्दिक क्यों न बन सका। ....
 

रविवार, 22 नवंबर 2015

hui mai...

तुम्हारे दिल में बसने आई थी
बस गई मैं
तुम्हारा घर सजाने आई थी
संवर गई मैं
तुमको बहार देने आई थी
खिलखिल गई मैं
तुमको प्यार करने आई थी
निखर  गई मैं
तुमको पाकर जिंदगी मुकम्मल
तुम्हारी होकर
खुशनसीब हुई मैं
बहुत खुशनसीब हुई मैं। …। 

सोमवार, 16 नवंबर 2015

tapasvi

शिला पर बैठा एक तपस्वी
ध्यानमे मग्न था
तप की उचाईयों से तप्त
ईश से संलग्न था
मानवीय घटनाक्रम जीवनसे उसके अछूते थे
तट पर बैठा प्यास से दूर
ठंडी एक अगन था
उसके जीवन का ध्येय
निर्वाण की प्राप्ति थी
रास के हरेक रास से विभूत
वो भावमग्न था
धरा पुत्र वो बलिष्ठ
ध्यान में ही मग्न था। ....... 

kyaaa?

क्या आज भी तुम्हारे दिल में
मेरा नाम धड़कता है ?
क्यों सुनाई देती है आवाज़ तुम्हारी मुझको
क्यों तेरे नाम से मेरा तन मन बहकता है ?
मेरी आँखों में ढली शाम की सुरमाई
क्या आज भी बिजली बन तुम पर बरसती है ?
या मेरी हंसी की छनछनाहट
तुम्हारे कानो में अब भी बजती है ?
मेरी यादों के तकिये पे अपना सिर रख तुम जो सोते थे
क्या उस सुकूं में आँख आज भी नम  होती है
वो हाथ पकड़ मेरा जो दिल के तार जोड़ते थे
क्या एक होने की कसक आज भी जाग उठती है ???????

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

तुम मेरी हो

तुम मेरी हो
क्योंकि
तुम मेरे मन  में  अन्तर्निहित
उस  पहली बूँद  की तरह हो
जो वर्षा के  संग आकर
वसुधा को तृप्त करती है

तुम मेरे भावों में उमड़ी
उस कविता की तरह हो
जो आनंदित करती है
मेरे कवित्व को

तुम मेरी  आँखों में निहित
उस रौशनी की  तरह हो
जैसे बादलों से घिरने के बाद
हलकी ओट से सूरज चमकता हो

तुम मेरी हो
मेरे होने का अस्तित्व
मेरी प्रसन्नता
मेरा आह्लाद
तुम से ही तो है

कभी

कभी समंदर में बसेरा
            कभी उड़ती हवाओं में
कभी पेड़ की डाली
          कभी घूमती फ़िज़ाओं में
कभी तनहा तनहा
         कभी मुस्कुराती
कभी आँख आंसू
      कभी खिलखिलाती
कभी मद्धम  मद्धम
         कभी जोर से … दौड़ जाती
ज़िन्दगी की यही
      बस अपनी कहानी
कभी ऑंखें शबनम
    कभी इनमे पानी  

आज़ादी ka जश्न

आज़ादी के जश्न को सबने मनाया
पर अगले दिवस क्या ये किसी को याद आया ?
कि सड़क पर  घूमता बच्चा वो नंगा
क्या ठिठुर कर रात में था सो भी पाया  ?
कि किनारे धो रही जो मैली धोती
सुबह उसने था क्या कोई कौर खाया  ?
कि सड़क पर धूप में जलता वो मानुष
जीवन तपन कि अग्नि से है बच भी पाया ?
कि अगर आज़ाद हैं हम , तो भी क्या है
कि
अगर आज़ाद हैं हम ,
                तो भी क्या है
क्या अमर बलिदान तुमको समझ आया ???????

क्यों होता है ऐसा

क्यों होता  है  ऐसा
कि जब अहसास होता है
तब तुम नहीं होते
और जब तुम होते हो
तो कोई अहसास ही नहीं होता……
कैसा ये ख्वाहिशों का सिला है
जब तुम्हे चाहा .......
              गम ही मिला है
ना  मुकद्दर में हो
ना  हकीकत में
फिर भी कुछ तो है
जो हममे जुड़ा है ....
        जो हममे जुड़ा है 

पल पल

हर पल में पल पल
हर पल को जाते देखा है
क्या तुमसे ये पल अनदेखा है ?
हर पल की आस
अगले पल बदल जाती
ये आँखें कुछ  कहती
इक पल में नम
इक पल में सूख जातीं
ये खेल है हर पल का
जो हर पल बीता जाता है
हर पल में जी लिया तो सुकून
नहीं तो हर पल बीता जाता है। ....... 
 


शुक्रवार, 19 जून 2015

कब समझोगे

कब समझोगे
मेरे प्रियतम
तुम मन की
मेरे अभिलाषा
कब नयनो की
मेरे दिल की
तुम समझोगे
जब भाषा।
क्यों रूठ गए
जो टूट गई
प्रिय वंदन
की परिभाषा।
नित चाह नहीं
कोई राह नहीं
मन को संताप ज़रा सा।
जब एक मिलन हो
जी लें तब 
उस छण को
पूर्ण धरा सा।  

बारिश और मै

कैसे गिरती हुई उन बूंदों से
मै खिल खिल जाती हू
जैसे तुम्हारे आगोश में
प्यार से सिमट सी जाती हू।

छप छप गिरता पानी
हथेलियों पर दरिया बनाता है
और  दिल उस समंदर मे
प्यार की कश्ती चलाता है।

मेरी मुस्कान से जैसे
तुम्हारा तन बदन खिल जाता है
तुम कितने मेरे अपने हो
मौसम ये अहसास कराता है।

बादल के टुकड़े सा नन्हा ये मन
प्यार के आसमां में घूमकर आता है
गुनगुनी सी धूप में
दिल का जर्रा जर्रा भर जाता है। 

आशा

नित नया सृजन
नित नया गगन
आओ हम कुछ कर जाएँ
इस जीवन की फुलबगिया में
हम पुष्प ही पुष्प खिलाएं।

पीछे छोड़ो उन अश्रु को
जो ला दें आँख अँधेरा
जल की बूंदों को स्वेद बना
लिख दो इक नया सवेरा।

जागे मन में जो अभिलाषा
उसे दो उमंग की भाषा
तुम पूर्ण करो कर्मठता से
नव पल्लव की तब आशा।


शुक्रवार, 29 मई 2015

सपनो को कोई पकड़ पाता

काश इन सपनो को
कोई पकड़ पाता
अपने दिल के दरो दिवार पर
बखूबी सजाता
शान से उन पर
वो नज़रें फिराता
एकबारगी ही सही
 अपनी किस्मत सराहता
चुन लेता उनमे से
जो ख्वाहिश में आता
बगीचे के फूलों
की तरह अपनाता
मुकद्दर को लेकिन
नहीं जश्न भाता
कभी पल सुनहरे
कभी है सताता
कभी तपती रेतों में
दे देता दरिया
कभी छाँव के पेड़
भी है गिराता
चलो अब तो खोलो
तमन्ना का खाता
भरो उनमे जी भर के
खुशियों की गाथा 

मै कल रात

तुम्हारे ख्यालों का तकिया बना कर सोई
                             मै,      कल रात
तुम्हारे प्यार के आँचल में  फूट फूट रोई
                            मै,      कल रात
तुम्हारे स्नेह की चादर ने
    एक सुकू सा दिया मुझको
प्यार का नरम बिछोना जिसपे तुम और
                             मै,      कल रात
आँखों ही आँखों में बात हुई पूरी
                   बस,     कल रात
कैसा अनूठा बंधन , जिसमे उलझी रही
                मै,       कल रात
मेरे माथे पे तुम्हारे हाथों का स्पर्श , चन्दन सा
                     महका ,            कल रात 

माँ

मेरे कानों में पड़ी वो सरगम पहली 
     तुम्हारी धड़कन ही तो थी 
भ्रूण रूप में मेरे निकटतम 
                 माँ तुम ही तो थी 
जीवन का मधुर संगीत 
तुम्हारी लोरी ही तो था 
प्यार का पहला अंकुर 
तुम्हारा स्नेह ही तो था 
ममता , दुलार की अतिश्योक्ति 
                    माँ तुम ही तो थी 

श्रृंगार का उत्तम उदाहरण 
    तुम्हारा चेहरा ही तो था 
अनेको मातृत्व के भाव 
    तुम्हारी गरिमा ही तो थी 
तुम्हारे स्नेह में सिमटी 
बढ़ के नवयुवती बनी 
मेरे जीवन की उज्जवल चांदनी 
                    माँ तुम  ही तो थी 

पराई हो जब गई पिया के देस 
  याद जिसकी आई प्रथम 
     माँ  तुम ही तो थी 
शिशु जब अाया मेरे आँचल में 
मैंने दुलराया  … इक आंसू भी गिर आया 
उन समस्त मिश्रित भावों में 
            माँ तुम ही तो थी 

आज मुझे फिर 
तुम्हारे हाथों का स्पर्श चाहिए 
कुंदन सी मुस्कान भर दे 
मेरे जीवन में 
प्राणो का संचार 
वो फिर चाहिए 
तुम हर पल में मेरे ह्रदय  विराजित हो 
जीवन दायिनी शक्ति बनकर 
मै स्वयं बालिका जिसके समक्ष 
बनना चाहती 
              माँ तुम  ही तो थी
              माँ तुम ही तो हो 





 

नीलाभ

जैसे नीला नीलगगन हो
जैसे नीला हो दरिया 
नीले नीले पंख हो जैसे 
 जैसे  नीली हो नदिया
…… 
नीली नीली आँखों वाली 
नीला जैसे नीलकमल 
नील है जैसे इन्द्रधनुष में 
नील है गाय बड़ी चपल 
……।
नील निराला इतना सुन्दर 
रंग  फैला ये कितना विस्तृत 
नीलकंठ नीलाभ लिए है 
नीला रंग है कितना अद्भुत 

ना मैं जी पाऊंगी

ना छुओ तुम मेरे तन को
मेरे बावरे मन को
कि फिर ना तुम जा पाओगे
ना मैं जी पाऊंगी

समर्पित है तुम्हे सब कुछ
कर दिया इतना तो व्यक्त
फिर रुठने कि जिद ना करो
ना मैं मना पाऊंगी

नींद की वीरान दुनिया में तुम
सपनोंसे आ जाते हो कभीकभी
सच बनकर साकार हो गए तो
ना मैं जी पाउंगी

मेरे अंतःस्थल पर विराजित
तुम्हारा असीमित प्रेम
तुम व्यक्त कर दोगे जिस क्षण
ना मैं जी पाऊंगी

तुम्हे स्पर्श करने को व्याकुल
बाहों के घेरे में आकर
ये पल प्रत्यक्ष हो जाऐ तो
ना मैं जी पाऊंगी

मेरे बच्चे

""
मेरी जीत भी तुम
मेरी हार भी तुम
जीवन के हर पथ पे
फूलों की बहार भी तुम

मेरी आँख का आंसू
मेरे चेहरे का नूर
जीवन के हर पथ पे
मेरे गालों की मुस्कान भी तुम

जीवन का चढ़ाव भी तुम
जीवन का उतार भी तुम
जीवन के हर पथ पे
ममता नदी  का बहाव भी तुम

आनंद का आकाश भी तुम
दर्द का दरिया भी तुम
जीवन के हर पथ पे
भावनाओं का ब्रह्माण्ड भी तुम 

मेरी जीत भी तुम
मेरी हार भी तुम
जीवन के हर पथ पे
फूलों की बहार भी तुम। …